गेहूं की खेती कैसे करें : उन्नत पैदावार और उपयोगी सुझाव । SMARTCROP ।

भारत में गेहूँ एक मुख्य फसल है। गेहूँ का लगभग 97% क्षेत्र सिंचित है। गेहूँ का प्रयोग मनुष्य अपने जीवनयापन हेतु मुख्यत रोटी के रूप में प्रयोग करते हैं, जिसमे प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। भारत में पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश मुख्य फसल उत्पादक क्षेत्र हैं।

गेहूं की खेती कैसे करें, Gehu ki kheti kaise kare


  • खेत की तैयारी 

गेहूँ की बुवाई अधिकतर धान की फसल के बाद ही की जाती है, पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताईयां करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए, डिस्क हैरो से धान के ढूंठे कट कर छोटे छोटे टुकड़ों में हो जाते हैं: इन्हें शीघ्र सड़ाने के लिए 20-25 कि०ग्रा० यूरिया प्रति हैक्टर कि दर से पहली जुताई में अवश्य दे देनी चाहिए। इससे ढूंठे, जड़ें सड़ जाती हैं ट्रैक्टर चालित रोटावेटर से एक ही जुताई द्वारा खेत पूर्ण रूप से तलैयार हो जाता है। बीजदर और बीज शोधन गेहूँकि बीजदर लाइन से बुवाई करने पर 100 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर तथा मोटा दाना 125 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर तथा छिड़काव से बुवाई कि दशा से 125 कि०ग्रा० सामान्य तथा मोटा दाना 150 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर कि दर से प्रयोग करते हैं, बुवाई के पहले बीजशोधन अवश्य करना चाहिए बीजशोधन के लिए बाविस्टिन, काबेन्डाजिम कि 2 ग्राम मात्रा प्रति कि०ग्रा० कि दर से बीज शोधित करके ही बीज की बुवाई करनी चाहिए।

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  • बुवाई विधि 

गेहूँ की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करनी चाहिए अंन्यथा उपज में कमी हो जाती है। जैसे-जैसे बुवाई में बिलम्ब होता है वैसे-वैसे पैदावार में गिरावट आती जाती है, गेहूँ की बुवाई सीड्रिल से करनी चाहिए तथा गेहूँ की बुवाई हमेशा लाइन में करें। सयुंक्त प्रजातियों की बुवाई अक्तूबर के प्रथम पक्ष से द्वितीय पक्ष तक उपयुक्त नमी में बुवाई करनी चाहिए, अब आता है सिंचित दशा इसमे की चार पानी देने वाली हैं समय से अर्थात 15-25 नवम्बर, सिंचित दशा में ही तीन पानी वाली प्रजातियों के लिए 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक उचित नमी में बुवाई करनी चाहिए और सिंचित दशा में जो देर से बुवाई करने वाली प्रजातियाँ हैं वो 15-25 दिसम्बर तक उचित नमी में बुवाई करनी चाहिए, उसरीली भूमि में जिन प्रजातियों की बुवाई की जाती है वे 15 अक्टूबर के आस पास उचित नमी में बुवाई अवश्य कर देना चाहिए, अब आता है किस विधि से बुवाई करें गेहूँ की बुवाई देशी हल के पीछे लाइनों में करनी चाहिए या फर्टीसीड्रिल से भूमि में उचित नमी पर करना लाभदायक है, पंतनगर सीड्रिल बीज व खाद सीड्रिल से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक है। 

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  • उर्वरकों का प्रयोग 

किसान भाइयों उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, गेहूँ की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 150 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हैक्टर तथा देर से बुवाई करने पर 80 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश, अच्छी उपज के लिए 60 कुंतल प्रति हैक्टर सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। गोबर की खाद एवं आधी नत्रजन की मात्रा तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में या बुवाई के समय खाद का प्रयोग करना चाहिए, शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई पर तथा बची शेष मात्रा दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करनी चाहिए। 

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  • गेहूँ की फसल में रोग और उनका नियंत्रण 

खड़ी फसल में बहुत से रोग लगते हैं,जैसे अल्टरनेरिया, गेरुई या रतुआ एवं ब्लाइट का प्रकोप होता है जिससे भारी नुकसान हो जाता है इसमे निम्न प्रकार के रोग और लगते हैं जैसे काली गेरुई, भूरी गेरुई, पीली गेरुई सेंहू, कण्डुआ, स्टाम्प ब्लाच, करनालबंट इसमें मुख्य रूप से झुलसा रोग लगता है पत्तियों पर कुछ पीले भूरे रंग के लिए हुए धब्बे दिखाई देते हैं, ये बाद में किनारे पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं: इनकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० प्रति हैक्टर की दर से या प्रापिकोनाजोल 25 % ई सी. की आधा लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए, इसमे गेरुई या रतुआ मुख्य रूप से लगता है,गेरुई भूरे पीले या काले रंग के, काली गेरुई पत्ती तथा तना दोनों में लगती है इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० या जिनेब 25% ई सी. आधा लीटर, 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए। यदि झुलसा, रतुआ, कर्नालबंट तीनो रोगों की संका हो तो प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना अति आवश्यक है। 

  • गेहूँ की फसल में खरपतवार नियंत्रण 

गेहूँ की फसल में रबी के सभी खरपतवार जैसे बथुआ, प्याजी, खरतुआ, हिरनखुरी, चटरी, मटरी, सैंजी, अंकरा, कृष्णनील, गेहुंसा, तथा जंगली जई आदि खरपतवार लगते हैं। इनकी रोकथाम निराई गुड़ाई करके की जा सकती है, लेकिन कुछ रसायनों का प्रयोग करके रोकथाम किया जा सकता है जो की निम्न है जैसे की पेंडामेथेलिन 30 ई सी 3.3 लीटर की मात्रा 800-1000 लीटर पानी में मिलकर फ़्लैटफैन नोजिल से प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव बुवाई के बाद 1-2 दिन तक करना चाहिए। जिससे की जमाव खरपतवारों का न हो सके, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30-35 दिन बाद एवं पहली सिंचाई के एक सप्ताह बाद 24डी सोडियम साल्ट 80% डब्लू पी. की मात्रा 625 ग्राम 600-800 लीटर पानी में मिलकर 35-40 दिन बाद बुवाई के फ़्लैटफैन नीजिल से छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद जहाँ पर चौड़ी एवं संकरी पत्ती दोनों ही खरपतवार हों वहां पर सल्फोसल्फ्युरान 75% 32 ऍम. एल. प्रति हैक्टर इसके साथ ही मेटासल्फ्युरान मिथाइल 5 ग्राम डब्लू जी. 40 ग्राम प्रति हैक्टर बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए, इससे खरपतवार नहीं उगते हैं या उगते हैं तो नष्ट हो जाते हैं।

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  • गेहूं की उपज 

असिंचित दशा में 35-40 कुंतल प्रति हैक्टर होती है, सिंचित दशा में समय से बुवाई करने पर 55-60 कुंतल प्रति हैक्टर पैदावार मिलती है, तथा सिंचित देर से बुवाई करने पर 40-45 कुंतल प्रति हैक्टर तथा उसरीली भूमि में 30-40 कुंतल प्रति हैक्टर पैदावार प्राप्त होती है।



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